
हरीश जोशी, पहाड़ का सच।

दो दिनों की मतगणना के बाद त्रिस्तरीय पंचायतों के नतीजों का जो निष्कर्ष निकला उन्हें परिवारों की परंपरा, प्रतिष्ठा से ही जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए, चूंकि चुनाव से पहले किसने किसको समर्थन दिया और चुनावी समर के मंथन के बाद कौन किसके साथ होगा, नतीजों ने इसकी संभावनाएं बढ़ा दी हैं।
पंचायत चुनाव में बड़ी तादाद में निर्दलीय जीतकर आए हैं और पार्टियों के बगावती भी जीते हैं। आने वाले दिनों में गिले-शिकवे दूर करने, मान मनौव्वल का दौर और बहुत कुछ देखने और सुनने में आएगा। फाइनल स्कोर बोर्ड में 12 जिलों में छोटी सरकार के गठन के बाद साफ होगा कि भाजपा-कांग्रेस के हिस्से में राजनीतिक रूप से क्या आया। पिछली बार 12 जिला पंचायतों में 10 पर भाजपा और 2 पर कांग्रेस के अध्यक्ष थे। इस बार के पंचायत चुनाव के नतीजों ने उत्तराखंड की सामाजिक और राजनीतिक भूमि में ताजगी भरी है।
एक ओर बड़ी सोच और जोश के साथ पेशेवर उच्च शिक्षित दक्ष युवाओं और महिलाओं ने आगे आकर राज्य की प्रगति के संकल्प को पंख लगाए हैं। वहीं, दूसरी ओर राज्य को अपनी सेवाएं देने वाले पूर्व अधिकारी आगे बढ़कर अपने गांवों की कमान संभालने को तैयार दिखे हैं। अनजाने में हुए इस बदलाव का असर आने वाले सालों में जरूर दिखेगा और सुदूर दूरस्थ व निर्जन गांवों में रौनक लौटने के साथ विकास का पहिया तेजी से भागेगा। .राजनीति में गहरी पैठ रखने वाले धुरंधरों ने इन चुनावों में अपनी अगली पीढ़ी को भविष्य के लिए परखने के लिए प्रथम पाठशाला की परीक्षा में बैठकर उनकी क्षमताएं आंकी हैं।
भाजपा नेता खजान दास के इस बयान कि “ समुद्र से एक-दो लोटा पानी कम होने से कुछ नहीं होता” को जीत की कसौटी पर कसा जाए तो पार्टी को चिंतन जरूर करना चाहिए। उत्तराखंड के मतदाताओं, जिनमें भाजपा के समर्थक और कार्यकर्ता भी शामिल हैं, परिवारवाद को सिरे से नकारा है। पंचायत चुनाव में समुद्र का पानी बेशक कम न हुआ हो लेकिन परिवारवाद के परपंच के जो नतीजे आए उनका असर स्पष्ट तौर पर दिख रहा है।
पूर्व मंत्री और लोकसभा चुनाव में पार्टी को मजबूती देने कांग्रेस से लाए गए राजेंद्र भंडारी निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष पत्नी रजनी भंडारी को पुनः नहीं जिता पाए। चमोली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का गृह जनपद है। वे अपने पोखरी विकासखंड से एक भी सीट नहीं जीता पाए। कुमाऊं में सल्ट से भाजपा विधायक महेश जीना के बेटे करन भी चुनाव हार गए। लोहाघाट से पूर्व विधायक पूरन सिंह की बेटी सुष्मिता डो फरत्याल नहीं जीतीं। भाजपा विधायक शक्ति लाल शाह के दामाद हरेंद्र शाह भी चुनाव हारे हैं। विधायक दिलीप सिंह की पत्नी नीतू देवी लैंसडौन से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गई हैं।
पूर्व विधायक मालचंद की बेटी अंजलि भी हार गईं, हालांकि बहू जीतीं हैं। विधायक सरिता आर्य के बेटे रोहित आर्य चुनाव हारे हैं। चुनावी नफा-नुकसान जल्द ही सामने आ जाएगा, लेकिन भाजपा
परिवार को पार्टी के परिवारवाद से नुकसान हुआ है। पंचायत चुनाव में कांग्रेस को पैर जमाने की उम्मीद बंधी है। लेकिन खुश होने की बात इसलिए नहीं है कि जीत कुछ परिवारों की है जो जमे जमाए हैं। कांग्रेस के दिग्गजों के बेटे-बेटियों ने राजनीति की पहली पाठशाला में जीत दर्ज कराकर पार्टी को तोहफा दिया है।
पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण के बेटे अरविंद सजवाण, प्रीतम के बेटे अभिषेक, गोविंद सिंह कुंजवाल की पुत्रवधु सुनीता कुंजवाल ने अपने परिवार की विरासत को आगे बढ़ाया है। इन सब के बीच उत्तराखंड के मतदाताओं ने तमाम ऐसे नए चेहरे सामने लाकर खड़े कर दिए हैं जो मैदान से अपने लोगों की वापसी का कारण बनेंगे। राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी और सीएम के आदर्श गांव सारकोट से 21 साल की प्रधान प्रियंका का डंका बज रहा है। टिहरी के कंडीसौंण के नकोट गांव की कंचन और पौड़ी पाबौ की साक्षी ऐसे चेहरे हैं जो अपने गांवों की दशा को नई दिशा देंगी,ऐसी उम्मीद की जा रही है।
आमतौर पर प्रधान का नाम आते ही गांव के बुजुर्ग और अनुभवी व्यक्ति का चेहरा सामने आता था, लेकिन इस बार 21 से 32 साल के तमाम युवा छोटी सरकार चलाने में अहम भूमिका निभाने जा रहे हैं। गांवों का विकास होगा तो पहाड़ से पलायन रुकेगा। इन नतीजों में कुछ अनुभवी चेहरे भी हैं जिन्होंने अपनी सेवा से राज्य को नई ऊंचाईयां देकर पहचान बनाई अब सेवानिवृत्त के बाद नई भूमिका में दिखेंगे। गुंजी से रिटायर पुलिस अधिकारी विमला गुंज्याल निर्विरोध जीतीं और पौड़ी में सेना में कर्नल रहे यशपाल सिंह नेगी अपनों की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हैं। पंचायत चुनाव में गरुड़ से छोटे कद के कलाकार लक्ष्मण कुमार ऊर्फ लच्छू पहाड़ी ने अपना और अपने क्षेत्र का कद बढ़ाया है।
