
मायके का जाति प्रमाण पत्र खारिज, सरकारी देनदारी वाले प्रत्याशी का नामांकन मंजूर

. कांग्रेस नेता ने राज्य निर्वाचन आयुक्त को लिखा पत्र
पहाड़ का सच, देहरादून।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने आरोप लगाया कि उत्तराखंड में पंचायत चुनावों के दौरान निर्वाचन अधिकारियों की भूमिका पर सवाल खड़े होने लगे हैं। राज्य के कई जिलों से लगातार शिकायतें मिल रही हैं कि अनुभवहीन और कनिष्ठ अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया गया है, जिनके गलत और नियमविरुद्ध निर्णयों से निष्पक्षता और पारदर्शिता पर आंच आ रही है।
आर्य ने राज्य निर्वाचन आयुक्त को लिखे ताजा पत्र में कहा है कि पंचायत चुनावों में अधिकांशतः कमजोर पृष्ठभूमि के ऐसे उम्मीदवार हिस्सा लेते हैं, जिन्हें कानूनी जानकारी सीमित होती है। ऐसे में निर्वाचन अधिकारियों का निष्पक्ष और कानूनी रूप से सक्षम होना जरूरी है। लेकिन चुनावों में कामचलाऊ व्यवस्था के तहत न सिर्फ कनिष्ठ अधिकारियों को जिम्मेदारी दे दी जा रही है, बल्कि कई फैसले पक्षपातपूर्ण भी दिख रहे हैं।
कई जिलों में सामने आए विवादित फैसले
ऊधमसिंह नगर के काशीपुर ब्लॉक की क्षेत्र पंचायत सीट खरमासी से अनुसूचित जाति (जाटव) की उम्मीदवार श्रीमती नर्मता का नामांकन इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि उन्होंने मायके का जाति प्रमाण पत्र लगाया था। जबकि नियमों के अनुसार अनुसूचित जाति की महिलाओं के मामले में मायके के प्रमाण पत्र को ही मान्य किया जाता है। इसके बावजूद सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता एवं रिटर्निंग अधिकारी अजय जॉन ने ससुराल का प्रमाण पत्र मांगते हुए नामांकन रद्द कर दिया।
रुद्रप्रयाग जिले में एक प्रत्याशी, जिस पर 27 लाख रुपये की सरकारी देनदारी है और जिसके खिलाफ वसूली के लिए वारंट भी जारी हो चुके हैं, का नामांकन इसलिए स्वीकार कर लिया गया कि मामला उच्च न्यायालय में लंबित है। जबकि आपत्तिकर्ताओं ने दस्तावेजों के साथ स्पष्ट किया कि प्रत्याशी को न तो उच्च न्यायालय से स्टे मिला है, न ही कोई राहत। फिर भी रिटर्निंग अधिकारी ने कोई कानूनी सलाह लिए बिना ही नामांकन मंजूर कर लिया।
इसी तरह टिहरी जिले के जिला पंचायत क्षेत्र अखोड़ी में सात प्रत्याशियों के नामांकन बिना ठोस कारण के निरस्त कर दिए गए, जिससे प्रतिद्वंद्वी को सीधा लाभ पहुंचा। . उन्होंने कहा कि
ऐसे उदाहरण केवल तीन जिलों तक सीमित नहीं हैं। राज्य के कई जिलों से इस प्रकार की शिकायतें मिल रही हैं कि अनुभवहीन अधिकारियों के फैसलों से चुनावी निष्पक्षता प्रभावित हो रही है।
.निष्पक्षता के लिए उठाए जाएं कदम
जानकारों और कई सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि ऐसे विवादित फैसलों की जांच कराई जाए और जिन अधिकारियों के निर्णय पक्षपातपूर्ण या नियमविरुद्ध पाए जाएं, उन्हें तुरंत निर्वाचन की जिम्मेदारी से हटाकर प्रशिक्षित व वरिष्ठ अधिकारियों को तैनात किया जाए। साथ ही भविष्य में निर्वाचन अधिकारियों के प्रशिक्षण और कानूनी सलाह की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाए।
राज्य निर्वाचन आयोग से अपेक्षा की जा रही है कि वह इस मामले में शीघ्र और सख्त कदम उठाकर निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने का भरोसा जनता को दिलाए।
