
हिंदू पक्ष की याचिका खारिज, 18 जुलाई को अगली सुनवाई . आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे हिन्दू पक्ष

पहाड़ का सच/एजेंसी
प्रयागराज। मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने से इलाहाबाद हाइकोर्ट ने इंकार कर दिया है। शुक्रवार को आए फैसले से हिंदू पक्ष को झटका लगा है। शाही ईदगाह को अयोध्या के रामजन्मभूमि की तरह विवादित ढांचा घोषित करने की अर्जी अदालत ने खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र ने शुक्रवार को दिया। कोर्ट ने मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करने के मामले में बहस पूरी होने के बाद पिछले महीने 23 मई को अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था। वादी की उक्त अर्जी इस प्रार्थना के साथ दाखिल की गई थी कि न्यायालय के आशुलिपिक (स्टेनोग्राफर) को यह निर्देश दिया जाए कि वह आगे की कार्यवाही में ‘शाही ईदगाह मस्जिद’ के स्थान पर ‘विवादित ढांचा’ शब्द का प्रयोग करें।
इस मुकदमे में वादियों की ओर से कहा गया कि यह सर्वविदित तथ्य है कि भगवान श्रीकृष्ण की ब्रज क्षेत्र में विभिन्न नामों से पूजा की जाती है, जिनमें से एक नाम केशवदेव है। शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ ने मथुरा में उनके जन्मस्थान पर मंदिर बनवाया था, जिसे विभिन्नआक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किया गया और पुनः कटरा केशवदेव मंदिर के रूप में पुनर्निर्मित किया गया। 1618 में ओरछा रियासत के राजा वीर सिंह जूदेव ने वहां एक भव्य मंदिर बनवाया, जिसे 1669 में मुगल शासक औरंगजेब द्वारा क्षतिग्रस्त किया गया और उसी स्थान पर एक अवैध ढांचा खड़ा किया गया, जिसे तथाकथित ईदगाह कहा गया।
अर्जी में प्रार्थना कि गई थी कि भविष्य में शाही मस्जिद ईदगाह को “विवादित संपत्ति” के रूप में संदर्भित किया जाए, का प्रतिवादियों की ओर से कड़ा विरोध किया गया। प्रतिवादियों ने आपत्ति में यह कहा कि किसी वादी को न्यायालय के आशुलिपिक को यह निर्देश देने का कोई प्रावधान नहीं है कि वह शाही मस्जिद ईदगाह को ‘विवादित संपत्ति’ कहे, खासकर जब वादी स्वयं पूर्व में इसे मस्जिद स्वीकार कर चुका है। यह अर्जी न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों का दुरुपयोग है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दोनों पक्षों की दलीलों से स्पष्ट है कि संपत्ति के स्वामित्व को लेकर विवाद है, अतः इसे “विवादित संपत्ति” कहा जा सकता है। लेकिन वाद की सुनवाई प्रारंभ नहीं हुई है और न ही अभी तक मुद्दे तय किए गए हैं, ऐसे में यह उचित नहीं होगा कि इस चरण में न्यायालय कोई निर्देश दे कि शाही मस्जिद ईदगाह को ‘विवादित ढांचा’ कहा जाए।
विवादित ढांचा घोषित करने के लिए दिए गए थे कई तर्क
विवादित ढांचा घोषित करने की मांग से संबंधित अर्जी के पीछे कई तर्क दिए गए थे। कहा गया था कि 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन मथुरा में स्थापित हुआ। 1815 में मराठों की हार के बाद, कंपनी ने कटरा केशवदेव की 13 एकड़ 37 डेसीमल भूमि की खुली नीलामी की, जिसे बनारस के राजा पटनीमल ने खरीदा। वह इस स्थान पर पुनः श्रीकृष्ण मंदिर बनवाना चाहते थे लेकिन जीवनकाल में ऐसा नहीं हो सका। उसके बाद 18 फरवरी 1944 को यह भूमि पं मदन मोहन मालवीय और अन्य द्वारा खरीदी गई और अंततः 1951 में जुगल किशोर बिड़ला द्वारा पं मालवीय की इच्छा के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की गई।
इस ट्रस्ट का उद्देश्य कटरा केशवदेव को श्रीकृष्ण स्मारक के रूप में पुनः स्थापित करना है। इस मुकदमे में वादियों ने एक घोषणात्मक डिक्री की मांग की है कि 12 अक्टूबर 1968 को वाद संख्या 43/1967 (श्री जन्मस्थान सेवा संघ बनाम शाही मस्जिद ईदगाह) में पारित डिक्री शून्य व अवैध है और प्रतिवादी शाही मस्जिद ईदगाह एवं उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को उक्त भूमि पर कोई अधिकार प्राप्त नहीं हुआ। वादियों ने अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग भी की कि तथाकथित ईदगाह को हटाया जाए और नियंत्रण न्यायालय द्वारा निर्धारित प्राधिकरण को सौंपा जाए।
एक निषेधाज्ञा भी मांगी गई है कि शाही मस्जिद ईदगाह एवं उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को उक्त भूमि पर किसी प्रकार की कार्रवाई करने से रोका जाए। वादी संख्या पांच ने यह भी कहा कि शाही ईदगाह मस्जिद उसी स्थान पर बनी है जिसे ऐतिहासिक रूप से भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है और जो हिंदुओं के लिए अत्यंत धार्मिक महत्व रखता है।
.आरोपों का खंडन कर अवैध निर्माण मानने से किया था इनकार
शाही मस्जिद ईदगाह एवं उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपने लिखित बयान में वादियों के आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने स्वीकार किया कि शाही मस्जिद ईदगाह का निर्माण 1669 में हुआ था पर यह मानने से इनकार किया कि यह एक अवैध निर्माण है। 12 अक्टूबर 1968 का समझौता वाद संख्या 43/1967 में विधिवत किया गया था। शाही मस्जिद ईदगाह वक्फ संपत्ति है और यह 400-500 वर्षों से उसी स्थिति में है। वाद 1991 के ‘पूजा स्थलों का विशेष प्रावधान अधिनियम’, सीपीसी की धारा 92, आदेश 7 नियम 3 व 11 के अंतर्गत वर्जित है।
18 जुलाई को होगी मामले की सुनवाई
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संपत्ति की पहचान को लेकर कोई विवाद नहीं है, इसलिए इस स्तर पर यह प्रार्थना स्वीकार नहीं की जा सकती। न्यायालय आगे की कार्यवाही में उपयुक्त शब्दों का प्रयोग कर संपत्ति को संदर्भित करेगा। शुक्रवार को सीपीसी के आदेश एक नियम आठ के तहत प्रतिनिधित्व क्षमता के लिए पक्षकारों ने अपने तर्क रखे। कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 18 जुलाई की तारीख लगाते हुए उस दिन सीपीसी के आदेश एक नियम आठ के मुद्दे पर आदेश करने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट में देंगे चुनोती : महेंद्र प्रताप
शाही मस्जिद ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने को लेकर हिन्दू पक्ष की याचिका खारिज होने पर अदालत के निर्णय को ईदगाह कमेटी ने न्याय की आशा के अनुरूप फैसला बताया है। याचिका दायर करने वाले महेन्द्र प्रताप सिंह एडवोकेट ने कहा है कि वह हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान और ईदगाह प्रकरण को लेकर हिन्दू पक्षकार महेन्द्र प्रताप सिंह ने ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित किए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उन्होंने बताया कि उन्होंने याचिका में मांग की थी कि जब तक जन्मस्थान और ईदगाह मामले को लेकर अदालत का निर्णय नहीं आ जाता, तब तक ईदगाह परिसर को विवादित ढांचा घोषित किया जाए। लेकिन ये मांग खारिज कर दी गई है।
उन्होंने बताया कि हाईकोर्ट के निर्णय की कॉपी उन्हें मिल गई है। इसका अध्ययन किया जा रहा है। इसके बाद हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी जाएगी। महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि इस फैसले से श्री कृष्ण जन्मभूमि मामले में मूल वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मूल वाद की अगली सुनवाई 18 जुलाई को है।
फैसला आशा के अनुरूप : तनवीर
याचिका खारिज हो जाने के बाद ईदगाह कमेटी के सचिव तनवीर अहमद ने अदालत के फैसले को न्याय की आशा के अनुरूप बताया है। उन्होंने बताया कि अदालत में उनकी ओर से हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता तसनीम अहमदी, महमूद प्राचा, डब्ल्यूएचए खान, नसीरउज्जमा आदि ने पक्ष रखते हुए कहा कि दोनों ही धार्मिक स्थलों के रास्ते अलग-अलग है। जब से ईदगाह बनी है तब से वहां नियमित पांच वक्त और जुमे की नमाज होती आ रही है। इसके अलावा सभी धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन भी ईदगाह में होता आ रहा है। ईदगाह मस्जिद पूरी तरह से आबाद है। इन्ही तर्कों के आधार पर अदालत ने अपना निर्णय दिया और हिन्दु पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया। अदालत के निर्णय का स्वागत करते हैं।
