
– क्षेत्र के 16 गांव के लोगों ने नदी में उतरकर पकड़ी मछलियां

पहाड़ का सच, टिहरी।
नैनबाग। जनपद के जौनपुर ब्लॉक का प्रसिद्ध ऐतिहासिक राज मौण मेले में क्षेत्र के हजारों लोगों ने वाद्ययंत्रों के साथ अगलाड़ नदी में मछली पकड़ने के साथ मनाया। क्षेत्र के 16 गांव के लोगों ने टिमरू का पाउडर (मौण) नदी में डाला, जिसके बाद बड़ी संख्या में लोग मछली पकड़ने नदी में उतरे। राजशाही के जमाने से मनाया जाने वाला मौण मेले का पूजा अर्चना के साथ शुभारंभ हुआ।
ढोल-दमाऊं की थाप पर महिला व पुरुषों ने सामूहिक से रूप तांदी नृत्य किया। करीब दो बजे दोपहर को ग्रामीणों ने मिलकर अगलाड़ नदी में टिमरु का पाउडर (मौण) डाला। मौण को नदी में डालते ही सैकड़ों की संख्या में लोग मछली पकड़ने नदी में उतर गए।
मौंड मेले का इतिहास सदियों पुराना है। स्थानीय बुजुर्गों और लोककथाओं के अनुसार, यह मेला जौनपुर क्षेत्र की जनजातीय संस्कृति से जुड़ा है। प्राचीन काल में जब लोग नदी और नालों पर ही अपने भोजन और जल स्रोत के लिए निर्भर रहते थे, तब सामूहिक रूप से मछलियों के शिकार की यह परंपरा शुरू हुई थी। यह परंपरा समय के साथ सामूहिक पर्व का रूप लेती गई, और हर साल वर्षा ऋतु के आगमन से पहले यह उत्सव मनाया जाने लगा।
बारिश के कारण गत वर्षों की अपेक्षा इस वर्ष कम लोग मौण मेले में पहुंचे। मौण मेला समिति के अध्यक्ष महिपाल सजवाण ने बताया कि टिमरू के पाउडर से मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश होती है। इसी दौरान लोग मछलियों को पकड़ते हैं। टिमरू के पाउडर से मछलियों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता है।
मौण मेले में सात पट्टियों के लोगों की मुख्य भूमिका है। प्रत्येक साल एक ही पट्टी के लोगों को मौण तैयार करने की जिम्मेदारी दी जाती है। इस वर्ष नदी में मौण डालने की जिम्मेदारी छज्यूला पट्टी के बंग्लों की कांडी, सैंजी, कांडीखाल, भटोली, चम्या, बनोगी, गांवखेत, भेडियान, घंडियाला, सरतली, कसोन, कांडा, रणोगी, तिमलियाल, पाली कुणा गांव की थी। मौण मेले के लिए गांव के प्रति परिवारों द्वारा टिमरु का पाउडर तैयार करना होता है।
मौण मेले का त्योहार आपसी भाईचारे व क्षेत्र की एकता का प्रतीक माना जाता है। कई दशकों से बिना सुरक्षा व्यवस्था के मौण मेला संचालित होता आ रहा है।
अगलाड़ नदी में मनाया जाने वाला यह मौण मेला लगभग 159 साल पुराना है। इतिहासकारों का मानना है कि यह मौण मेला सन 1866 में राजशाही काल में शुरू हुआ था। राजशाही काल में टिहरी नरेश मौण मेले में मौजूद रहते थे। प्रत्येक साल जून के अंतिम सप्ताह में अगलाड़ नदी में मछली पकड़ने का सामूहिक त्योहार मनाया जाता रहा है।
इस मौके पर गोपाल, सिया लाल, राजेंद्र, महिपाल राणा, सिकेंद्र रौछला, जयेंद्र सिंह, लुदर भंडारी, विरेंद्र वर्मा, विजय सिंह, दिपाल सिंह, नीरज रावत आदि मौजूद थे।
