
पहाड़ का सच देहरादून।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एनएच-74 घोटाले से जुड़े मामले में गुरुवार को सेवानिवृत्त पीसीएस अधिकारी डीपी सिंह के राजपुर स्थित निवास और अन्य ठिकानों पर छापा मारा है। ईडी ने डीपी सिंह, पूर्व एसडीएम भगत सिंह फोनिया सहित सात लोगों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का एक और मामला दर्ज किया है, जिन पर लगभग आठ करोड़ रुपये के धन शोधन का आरोप है।
यह घोटाला उत्तराखंड के सबसे बड़े घोटालों में से एक है, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण में मुआवजे के रूप में लगभग 250 करोड़ रुपये के गबन की आशंका है।
डोईवाला शुगर मिल में कार्यकारी निदेशक डीपी सिंह के देहरादून में राजपुर रोड पर स्थित घर पर आज सुबह ईडी की टीम पहुंची । सीतापुर और बरेली स्थित घर में भी छापा पड़ा है। .बताया जा रहा है कि हरिद्वार में एक अफसर और काशीपुर में एक वकील के घर भी टीम पहुंची है। इस घोटाले में एनएच 74 के चौड़ीकरण के लिए अधिग्रहित जमीन के उपयोग को बदलने का आरोप लगा था और सरकारी खजाने पर करीब 162.5 करोड़ के नुकसान की बात सामने आई थी।
घोटाले में पीसीएस अफसर डीपी सिंह व पूर्व एसडीएम काशीपुर भगत सिंह फोनिया समेत सात के खिलाफ ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का एक और केस दर्ज किया है। सभी आरोपियों पर करीब आठ करोड़ रुपये के धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) का आरोप है। ईडी इस मामले में चार्जशीट दाखिल कर चुकी है।जानकारी के मुताबिक ईडी ने पांच अगस्त 2022 को पीसीएस अफसर डीपी सिंह, पूर्व एसडीएम काशीपुर दिनेश भगत सिंह फोनिया, पूर्व तहसीलदार मदन मोहन पाडलिया, एक कंपनी फाइबरमार्क्स पेपर्स प्राइवेट लिमिटेड, इस कंपनी के अधिकारी जसदीप सिंह गोराया और हरजिंदर सिंह के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में चार्जशीट दाखिल की थी। सभी आरोपितों पर 7.99 करोड़ रुपये का प्रोसीड ऑफ क्राइम (पीओसी) साबित हुआ है।
क्या है एनएच-74 घोटाला?
एनएच-74 मुआवजा घोटाला ( NH 74 Scam) उत्तराखंड के सबसे बड़े घोटालों में एक माना गया है। यह घोटाला वर्ष 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार बनने के तत्काल बाद सामने आया था। राष्ट्रीय राज मार्ग के चौड़ीकरण में मुआवजा राशि आवंटन में तकरीबन 250 करोड़ के घोटाले की आशंका है। आरोप है कि मिलीभगत से अपात्र व्यक्तियों को मुआवजा राशि वितरित की गई। इसकी जांच एसआइटी ने भी की।
अब तक जांच में एसआइटी घोटाले की पुष्टि कर अधिकारियों व किसानों समेत 30 से अधिक लोगों को जेल भेज चुकी है।
इस प्रकरण में दो आइएएस अधिकारी भी निलंबित हुए थे, जिन्हें बाद में शासन ने क्लीन चिट दे दी। दोनों अधिकारी मौजूदा समय में शासन में अहम विभागों को संभाले हुए हैं।
