
ये हमारी सांस्कृतिक विरासत है,आने वाले वर्षों में होगा वृहद स्वरूप: नैथानी

पहाड़ का सच देहरादून।
गंगा दशहरा के पावन पर्व पर बाबा विश्वनाथ मां जगदीशिला की 26वीं वार्षिक डोली रथ यात्रा का समापन टिहरी गढ़वाल के पवित्र बिशोन पर्वत पर सम्पन्न हुआ।
यह केवल एक यात्रा नहीं थी — यह तीर्थ, संस्कृति और भावनाओं का संगम था, जिसमें उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल की पावन धरती पर डोली ने 30 दिनों तक भक्तों को आशीर्वाद और आत्मिक ऊर्जा प्रदान की।
इन 30 दिनों में, हजारों श्रद्धालुओं की अडिग आस्था और प्रेम ने हर पड़ाव को तीर्थ बना दिया। डोली जहां पहुची, वहां लोक संस्कृति के स्वर गूंजे, लोक देवताओं की महिमा जागी, और हर गांव में भक्ति की एक चिरस्थायी अलख जगी। हर पड़ाव पर जिस श्रद्धा और सम्मान से जनता ने डोली का स्वागत किया,
वह इस बात का प्रमाण है कि हमारी संस्कृति अभी जीवित है, हमारी परंपरा अब भी जन-जन के दिल में धड़कती है।
मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ उन सभी लोगों का, जिन्होंने तन-मन-धन से इस यात्रा को सफल बनाया, हर मोड़ पर साथ दिया, और डोली की गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखा।आप सभी की भक्ति ही मेरी सबसे बड़ी शक्ति रही।
आपका यह सहयोग मेरे लिए केवल समर्थन नहीं, बल्कि वह अदृश्य शक्ति है जिसे मैंने आरंभ से लेकर समापन तक हर पल महसूस किया।हमारा प्रयास रहा है कि यह डोली उत्तराखंड की अधिकाधिक सांस्कृतिक धरोहरों और देवालयों से जुड़कर जनमानस में आस्था का संचार करे। और अगले वर्ष हमारा संकल्प है कि अधिक देवस्थलों को जोड़कर इस यात्रा को एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का पर्व बनाया जाए।
आस्था अभी रुकी नहीं है… यह यात्रा अब हृदयों में आगे बढ़ रही है।आने वाले समय में यह कारवाँ और भी विशाल होगा,चूंकि यह सिर्फ यात्रा नहीं, हमारी पहचान, हमारी श्रद्धा, हमारी संस्कृति, हमारी परम्परा और हमारी शक्ति है: मंत्री प्रसाद नैथानी यात्रा संयोजक
