
– काशीपुर परगना मजिस्ट्रेट ने उच्च न्यायालय के आदेश पर की कार्रवाई
पहाड़ का सच काशीपुर।
कोर्ट के आदेश के अनुसार सार्वजनिक मार्गों और राष्ट्रीय राजमार्गों पर नगर निकायों या समितियों द्वारा बनाए गए सभी द्वार अब अवैध माने जाएंगे और उन्हें हटाना अनिवार्य होगा।
काशीपुर परगना मजिस्ट्रेट अभत प्रताप सिंह ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेशों का हवाला देते हुए बैलजूड़ी क्षेत्र में कमेटी और नगर पालिका द्वारा बनाए गए द्वारों को ध्वस्त करवाया। यह कदम उत्तराखंड हाईकोर्ट की जनहित याचिका संख्या 192/2024 में दिए गए आदेशों के अनुपालन में उठाया गया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि राष्ट्रीय राजमार्गों और सार्वजनिक मार्गों पर कोई भी निर्माण बिना वैध अनुमति के अवैध है। हाईवे पर कोई निर्माण, यूनिपोल, होर्डिंग, बैनर, पोस्टर दण्डनीय अपराध होगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता व सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन ने बताया कि “कंट्रोल ऑफ नैशनल हाईवेज (लैंड एंड ट्रैफिक) एक्ट 2002” की धारा 24 और 38 के अनुसार, हाईवे पर बिना अनुमति किसी भी प्रकार का निर्माण जैसे कि खंभे, पोल, द्वार, विज्ञापन टॉवर आदि पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं हैं। इसका उल्लंघन धारा 39 के तहत एक वर्ष तक की सजा योग्य अपराध है।
सार्वजनिक मार्गों पर प्राइवेट गेट भी अवैध
नदीम उद्दीन ने यह भी बताया कि कई निजी कॉलोनियों में सरकार या निकाय द्वारा निर्मित मार्गों पर निजी गेट लगाकर आमजन का आवागमन रोका गया है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 15 के अंतर्गत मूल अधिकारों और मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी हैं स्पष्ट
एम.सी. मेहता केस सहित कई सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में यह स्पष्ट किया गया है कि हाईवे पर केवल ट्रैफिक सिग्नल/साइनबोर्ड के अतिरिक्त कोई विज्ञापन सामग्री नहीं लगाई जा सकती। इसके साथ ही, उत्तराखंड लोक सम्पत्ति विरूपण निवारण अधिनियम 2003 की धारा 3 के तहत दीवारों, खंभों आदि पर बैनर-पोस्टर लगाना भी दण्डनीय अपराध है।
अब प्रदेशव्यापी कार्रवाई की उम्मीद
काशीपुर परगना मजिस्ट्रेट द्वारा बीएनएसएस की धारा 152 के तहत चल रहे फौजदारी वाद संख्या 4/2025 में 27 मई 2025 को दिए गए अंतिम आदेश के अनुसार, सरकारी व स्थानीय निकाय के धन से बने अवैध द्वारों को ध्वस्त कर दिया गया। इससे प्रदेशभर की जनता को यह उम्मीद जगी है कि अब अन्य शहरों और कस्बों में भी ऐसे अवैध द्वार, यूनिपोल, बैनर और होर्डिंग्स को हटाया जाएगा।
समानता का संवैधानिक अधिकार और नियमों की बाध्यता
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी नागरिकों को कानून के समान संरक्षण का अधिकार है। साथ ही, उत्तराखंड कर्मचारी आचरण नियमावली 2002 के तहत सभी के साथ समान व्यवहार करना अनिवार्य है। इन सिद्धांतों के आलोक में अवैध निर्माण पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
