
उच्चतम न्यायालय ने कहा, कैडर अधिकारियों को दें अधिक अवसर , दो साल में कम करें प्रतिनियुक्ति

अभी तक आईजी स्तर पर 50 फीसद पद आईपीएस अफसरों के लिए आरक्षित
पहाड़ का सच/एजेंसी
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में कैडर के अधिकारियों को बेहतर अवसर देने के लिए महानिरीक्षक रैंक तक के आईपीएस अफसरों की प्रतिनियुक्ति को दो वर्ष में क्रमिक रूप से कम किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सीएपीएफ में कैडर अधिकारियों की देरी से पदोन्नति होने से मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
जस्टिस अभय एस ओका (अब सेवानिवृत्त) एवं जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने 23 मई के विस्तृत आदेश में कहा कि सीएपीएफ की बहुप्रतीक्षित कैडर समीक्षा छह महीने में होनी चाहिए। इस पर कोर्ट ने 2020 रोक लगा दी थी। पीठ ने कहा, यह पूरी तरह साफ है कि सीएपीएफ को कैडर मुद्दों और अन्य सभी संबंधित मामलों के लिए संगठित समूह-ए सेवा (ओजीएएस) के रूप में माना गया है। ऐसे में ओजीएएस को उपलब्ध सभी लाभ स्वाभाविक रूप से सीएपीएफ को मिलने चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि उन्हें एक लाभ दिया जाए और दूसरे से वंचित किया जाए।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (आईजी रैंक) तक के पदों पर आसीन हैं, इसलिए उनकी पदोन्नति की संभावनाएं बाधित हो रही हैं, जिससे सेवा पदानुक्रम में ठहराव आ रहा है।
अभी है ये कैडर व्यवस्था
कोर्ट ने कहा, अभी इन बलों में आईजी स्तर पर 50 फीसदी पद आईपीएस अफसरों के लिए आरक्षित हैं, जबकि उप महानिरीक्षक (डीआईजी) रैंक के करीब 15 फीसदी पद सेना (5 फीसदी) के अलावा अखिल भारतीय सेवा से प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारियों के लिए रखे गए हैं।
18 हजार अधिकारियों ने दिया था आवेदन
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन पांच केंद्रीय पुलिस बल-सीआरपीएफ, बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी को विभिन्न तरह के कानून-व्यवस्था संबंधी कर्तव्यों के लिए तैनात किया जाता है। इनमें सीमा सुरक्षा के अलावा आंतरिक सुरक्षा कार्यों, आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने और चुनाव के लिए तैनाती भी शामिल है। इन बलों के करीब 18 हजार अधिकारियों ने 2009 में गृह मंत्रालय से प्रत्येक को संगठित समूह-ए सेवा (ओजीएएस) मानते हुए कैडर समीक्षा की मांग की थी, ताकि पदोन्नति में देरी से संबंधित उनके मुद्दे का समय पर समाधान किया जा सके।
