
पहाड़ का सच देहरादून।
यूपीईएस (UPES) के स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज़ एंड टेक्नोलॉजी (SOHST) ने मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ द अमेरिकाज़ (MUA / एमयूए) के साथ एक अनोखी रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की है। यह सहयोग भारत में डॉक्टर बनने की इच्छा रखने वाले छात्रों के लिए मेडिकल शिक्षा के नए अवसर खोलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इस साझेदारी के तहत, यूपीईएस अब एक त्वरित मेडिकल शिक्षा कार्यक्रम प्रदान करेगा, जिसमें छात्रों को प्रतिष्ठित 5-वर्षीय बीएससी/एमडी अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम (1+2+2 वर्ष) में प्रवेश दिया जाएगा। आवेदन फरवरी 2025 से शुरू होंगे और पहला बैच अगस्त 2025 से पढ़ाई शुरू करेगा। इस कार्यक्रम में पहला वर्ष यूपीईएस में होगा, इसके बाद दो वर्ष एमयूए के सेंट किट्स, नेविस आइलैंड कैंपस में प्री-क्लिनिकल शिक्षा और अंतिम दो वर्ष अमेरिका के संबद्ध अस्पतालों में क्लिनिकल रोटेशन के रूप में पूरे होंगे।
पहले वर्ष में, छात्र यूपीईएस के स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज़ एंड टेक्नोलॉजी (SOHST) में प्री-मेडिकल सर्टिफिकेट प्रोग्राम में दाखिला लेंगे। इस वर्ष के सफल समापन पर, वे लगभग 47 क्रेडिट अर्जित करेंगे, जिन्हें एमयूए में स्थानांतरित किया जा सकता है। सभी मूल्यांकन सफलतापूर्वक पास करने और एमयूए की पात्रता शर्तों को पूरा करने पर, छात्रों को 50,000 अमेरिकी डॉलर की छात्रवृत्ति प्राप्त होगी, जो 13 सेमेस्टर में वितरित की जाएगी। यह विशेष उद्घाटन छात्रवृत्ति केवल उन्हीं छात्रों के लिए उपलब्ध होगी जो यूपीईएस में प्री-मेडिकल सर्टिफिकेट पूरा करेंगे।
यह पूरी तरह से आवासीय और उच्च स्तर का कठोर कार्यक्रम होगा, जो वैश्विक शिक्षा मानकों का पालन करेगा। छात्रों को दूसरे वर्ष में एमयूए में प्रगति करने के लिए न्यूनतम 3.0/4.0 जीपीए बनाए रखना आवश्यक होगा। अगले दो वर्षों में मेडिकल स्कूल शिक्षा की नींव रखी जाएगी। एमयूए के नेविस आइलैंड अकादमिक कैंपस में पांच सेमेस्टर में बेसिक साइंसेज़ की पढ़ाई करवाई जाएगी।
इसके बाद, छात्र अमेरिका जाएंगे, जहां वे एमयूए से संबद्ध शिक्षण अस्पतालों, क्लीनिकों और मेडिकल सेंटरों में पांच सेमेस्टर की क्लिनिकल रोटेशन पूरी करेंगे।
एमयूए की स्थापना ढाई दशक पहले हुई थी और यह छोटे, इंटरैक्टिव क्लासेस, व्यक्तिगत सहायता और अमेरिकी और कनाडाई मेडिकल स्कूलों के अनुरूप पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए समर्पित है। एमयूए को एक्रेडिटेशन कमीशन ऑन कॉलेजेस ऑफ मेडिसिन (ACCM) द्वारा मान्यता प्राप्त है, जिसे वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ मेडिकल एजुकेशन (WFME) मान्यता देता है। एमयूए छात्रों को यूएसएमएलई (USMLE) परीक्षा देने के लिए तैयार करता है।
अब तक, एमयूए ने 1,800 से अधिक डॉक्टर तैयार किए हैं, जिनमें से कई अमेरिका, कनाडा और दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रैक्टिस कर रहे हैं। एमयूए के स्नातकों को 98% रेजीडेंसी प्लेसमेंट दर (2020-2024) प्राप्त हुई है, जिसका अर्थ है कि मेडिकल स्कूल पूरा करने के बाद वे अस्पतालों में विशेषज्ञता प्रशिक्षण (Residency) प्राप्त करने में सफल होते हैं, जो एक लाइसेंस प्राप्त डॉक्टर बनने के लिए आवश्यक चरण है।
इस साझेदारी की जरूरत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पूरी दुनिया में योग्य डॉक्टरों की मांग लगातार बढ़ रही है। अनुमानों के अनुसार, 2030 तक 1 करोड़ से अधिक डॉक्टरों की कमी होगी। भारत में 1,511 लोगों पर केवल 1 डॉक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुशंसित अनुपात 1,000 लोगों पर 1 डॉक्टर का है। अमेरिका में 2034 तक लगभग 1,24,000 डॉक्टरों की कमी होगी। कनाडा में 2031 तक लगभग 78,000 डॉक्टरों और जनरल प्रैक्टिशनर्स की कमी का अनुमान है।
यूपीईएस के स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेज़ एंड टेक्नोलॉजी (SOHST) की डीन, डॉ. पद्मा वेंकट ने कहा: “भारत में मेडिकल शिक्षा की मांग बहुत अधिक है, लेकिन सीटों की संख्या सीमित है। हर साल 2.3 मिलियन से अधिक छात्र NEET परीक्षा देते हैं, लेकिन केवल 91,900 एमबीबीएस सीटें उपलब्ध हैं, जिससे चयन दर 4% से भी कम है। इस कारण, 50,000 से अधिक भारतीय छात्र हर साल मेडिकल शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं। एमयूए के साथ हमारी यह साझेदारी छात्रों को विश्व स्तरीय शिक्षा का एक संगठित और उत्कृष्ट विकल्प प्रदान करेगी, जिससे वे वैश्विक स्तर पर मेडिकल प्रैक्टिस करने के योग्य बन सकें और भारत में डॉक्टरों की कमी को दूर कर सकें।”
एमयूए की चीफ पार्टनरशिप्स ऑफिसर, डायना मोकुटे ने कहा: “हम यूपीईएस के साथ इस साझेदारी को लेकर बेहद उत्साहित हैं, जिससे भारतीय छात्रों को एमयूए के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित प्री-मेडिकल प्रोग्राम का लाभ मिलेगा। यह पहल हमारी साझी सोच को दर्शाती है, जो अगली पीढ़ी के डॉक्टरों को सशक्त बनाने और वैश्विक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सफल करियर के लिए तैयार करने पर केंद्रित है।”
यूपीईएस और एमयूए के बीच हुए इस ऐतिहासिक समझौते से उन छात्रों को एक शानदार अवसर मिलेगा, जिन्हें भारत में मेडिकल कॉलेजों में सीटों की कमी के कारण एडमिशन नहीं मिल पाता, जबकि देश में डॉक्टरों की भारी जरूरत बनी हुई है।
