पहाड़ का सच, विकासनगर/चकराता
जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र इन दिनों बूढ़ी दीपावली के जश्न में डूबा हुआ है। दो सौ से अधिक गांवों के पंचायती आंगन इन दिनों पारम्परिक गीतों के स्वर लहरियों से गुलजार हैं। सोमवार को बूढ़ी दीवाली पर बिरूड़ी पर्व मनाया गया है। इस दिन गांव के बाजगी सबसे पहले ईष्ट देवता को हरियाडी (गेहूं जौ से उगाई गई ) हरियाली भेंट स्वरूप चढ़ाते हैं। उसके बाद सभी ग्रामीणों को हरियाड़ी दी जाती है।
इसे लोग बहुत ही पवित्र और उत्साह, उमंग का प्रतीक मानते हैं। सभी ग्रामीण पंचायती आंगन मे एकत्रित होकर बिरूड़ी फेंकने का इंतज़ार करते हैं। इसमें गांव के मुखिया सहित कुछ लोग अखरोट की बिरूडी फेंकते हैं। जिसे आगंन में सभी बड़े -छोटे और महिलाएं अखरोट को उठाते हैं। जिसे सभी लोग प्रसाद के रूप मे ग्रहण करते हैं। उसके बाद सभी महिलाएं एवं पुरूष हारूल नृत्य , तांदी झैंता रासों सहित पारम्परिक गीत गाते हैं।
क्षेत्र के टुंगरा, रिखाड़, बिरमऊ, नगऊ, मागटी, नागथात, बिसोई, मंगरोली, क्वारना, डकियारना, लोरली, कोरवा, सैंज, क्यावा, निथला, बिसोई, हयो, टगरी अस्टाड़, गडौल, कचटा, लखवाड़, लकस्यार, दुइना, सिला, रामपुर, गडौल, मटियावा, जुसोऊ, दुईना आदि गांवों में दीवाली का जश्न ग्रामीणों ने जमकर मनाया।
बताते चलें कि देहरादून जिले का जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर अपनी अनोखी संस्कृति के रूप में विश्व विख्यात है। यहां के त्योहार अलग ही अंदाज में मनाए जाते हैं। जहां देश की दिवाली एक महीने पहले समाप्त हो चुकी है तो वहीं जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा है। इसी कड़ी में रविवार यानी 1 दिसंबर की सुबह से बूढ़ी दीवाली का आगाज छोटी दीवाली के रूप में होले मशालें जलाकर शुरू हो गया था।