– राज्य के संसाधनों पर बाहरी लोग हो रहे हैं काबिज
– स्थानीय मूल निवासी और भूमिधर हो सकते भूमिहीन
पहाड़ का सच देहरादून।
उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष करन माहरा ने राज्य में भूमि खरीद-फरोख्त के लिए हो रही रजिस्ट्रियों पर तत्काल रोक लगाये जाने तथा राज्य में सख्त भू-कानून लागू किये जाने की मांग की है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लिखे पत्र में करन माहरा ने कहा है कि विगत लंबे समय से उत्तराखंड के लोग राज्य में सशक्त भू कानून लागू किये जाने की मांग को लेकर आंदोलित हैं। उत्तराखंड एकमात्र ऐसा हिमालयी राज्य है, जहां पर राज्य के बाहर के लोग पर्वतीय क्षेत्रों की कृषि भूमि, गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद सकते हैं। राज्य में सशक्त भू कानून नहीं होने की वजह से राज्य की जमीन को राज्य से बाहर के लोग बड़े पैमाने पर खरीद रहे हैं और राज्य के संसाधनों पर बाहरी लोग काबिज हो रहे हैं, जिसके चले स्थानीय मूल निवासी और भूमिधर अब भूमिहीन होते जा रहे हैं जिसका पर्वतीय राज्य की संस्कृति, परंपरा, अस्मिता और पहचान पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि देश के अन्य कई राज्यों में कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त से जुड़े सख्त नियम हैं। उत्तराखंड के ही पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी कृषि भूमि के गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद-फरोख्त पर पूर्ण रोक है।
करन माहरा ने कहा कि अलग उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के उपरान्त वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद से अब तक भूमि से जुड़े कानून में कई बदलाव किए गए हैं और उद्योगों का हवाला देकर भू-खरीद प्रक्रिया को आसान बनाया गया। राज्य की सीमित कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल ही बुनियादी ढांचे के विकास के लिए हुआ है। खेती योग्य भूमि पर ही उद्योग लगाये गये तथा शहरीकरण हुआ यहां तक कि पहाड़ों में जिला मुख्यालय, शिक्षण संस्थान एवं सार्वजनिक प्रतिष्ठान सब श्रेष्ठ कृषि भूमि पर बने।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि राज्य में बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद सीमित करने के लिए वर्ष 2003 में तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश भू-कानून में संशोधन किया गया और राज्य का अपना भूमि कानून अस्तित्व में आया। इस संशोधन में बाहरी लोगों को कृषि भूमि की खरीद 500 वर्ग मीटर तक सीमित की गई। वर्ष 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.सी खंडूरी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा भू-कानून में संशोधन कर भूमि खरीद की सीमा घटाकर 250 वर्ग मीटर की गई। परन्तु वर्ष 2018 में तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा भू-कानून में बड़ा बदलाव कर, उद्योग स्थापित करने के नाम पर पर्वतीय क्षेत्र में जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा और किसान होने की बाध्यता समाप्त कर दी गई। साथ ही राज्य में कृषि भूमि का भू उपयोग बदलना आसान कर दिया गया।
उन्होंने कहा कि कई हिमालयी राज्यों में सख्त भू-कानूनों के चलते उनकी अपनी जमीनें सुरक्षित हैं तथा उत्तराखंड ही एकमात्र ऐसा हिमालयी राज्य है जहां कोई भी बाहरी व्यक्ति जमीनों की खरीद-फरोख्त कर सकता है। जहां एक ओर राज्य सरकार द्वारा सडकों के चौडीकरण के नाम पर बरसों से बसे लोगों को उजाड़ने का काम किया जा रहा है वहीं विगत 23 वर्षों में उत्तराखण्ड राज्य में हुई जमीनों की बेतहाशा खरीद-फरोख्त के चलते मैदानी क्षेत्रों के साथ ही पर्वतीय क्षेत्र की अधिकतर उपयोगी जमीनें बिक चुकी हैं जिसके कारण पर्वतीय क्षेत्रों से बडी संख्या में लोग पलायन को मजबूर हो रहे हैं।
करन माहरा ने मांग की है कि यदि राज्य सरकार राज्य में सख्त भू-कानून के प्रति ईमानदार है तो वर्तमान में भूमि खरीद-फरोख्त के लिए हो रही रजिस्ट्रियों पर तत्काल रोक लगाई जाए तथा भू-कानून समिति द्वारा दिये गये सुझावों पर तत्काल अमल करते हुए राज्य में सशक्त भू-कानून अविलंब लागू किया जाए ताकि राज्य की बची हुई बेस कीमती भूमि को खुर्द-बुर्द होने से बचाया जा सके।