– कुछ पॉलिटिकल टूरिस्ट को सदन में सुनना हो गया है हमारी मजबूरी
– जिन्होंने राज्य आंदोलन की पीड़ा नहीं सही वे क्या जानें उत्तराखंड का मर्म
– आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण दिलाने में लग गए 11 साल
पहाड़ का सच गैरसैंण। देहरादून के पूर्व मेयर व धर्मपुर के विधायक विनोद चमोली ने मानसून सत्र में आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण लागू किए जाने के विषय में चर्चा के दौरान बेबाक टिप्पणी की।
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उन्होंने कहा कि उत्तराखंड कोई खैरात में नहीं मिला है। राज्य की माताओं, बहिनों और भाइयों की शहादत के बाद राज्य मिला है। उन्होंने कहा कि 11 हजार से अधिक चिह्नित राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसद क्षैतिज आरक्षण को लागू कराने में पूरे 11 साल लग गए। इस मामले में पूर्व में जो बिल लाया गया था उसमें सिर्फ समूह ग और घ के पदों पर आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। संसदीय मंत्री की अध्यक्षता में गठित समिति ने (जिसमें विनोद चमोली भी शामिल थे) पीसीएस स्तर की सेवाओं के पदों को भी आरक्षण की परिधि में शामिल कराया।
चमोली ने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों को मिलने वाले क्षैतिज आरक्षण के मामले में सत्ता पक्ष व विपक्ष ने भरपूर सहयोग दिया। हां इस सदन के भीतर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अवसरवादी हैं, राज्य बनने के बाद उत्तराखंड आए और देवभूमि में राजनीति कर रहे हैं। उनका राज्य के लोगों से दिली लगाव नहीं है फिर भी हम उनको सुन रहे हैं। चमोली ने कहा कि उमेश शर्मा ने अपने बयान में कहा कि उत्तराखंड अपराधियों की शरण स्थली बन गया है।