– आयोग ने रिवर्स पलायन के लिए प्रदेश सरकार को दिए कई अहम सुझाव
– आयोग के उपाध्यक्ष रिटायर्ड आईएफए एस एस नेगी ने हाल ही में सीएम को सौंपी रिपोर्ट
हरीश जोशी/पहाड़ का सच, देहरादून।
ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग की सर्वे रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि चमोली, उत्तरकाशी व पिथौरागढ़ जिले के 11 राजस्व गांव गैर आबाद हैं। आयोग ने रिवर्स पलायन को बढ़ावा देकर इन गांवों को आबाद करने के लिए कई सुझाव दिए हैं। आयोग की रिपोर्ट सीमा में चाक चौबंद सुरक्षा और सतर्कता बरतने को ओर भी इंगित करती है। वैसे वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत प्रदेश सरकार सीमावर्ती गांवों में बुनियादी सुविधाएं, पर्यटन को बढ़ावा दे रही है।
हाल ही में पलायन आयोग ने चीन सीमा से सटे उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी, चमोली जिले के जोशीमठ, पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी, धारचूला विकास खंड की 131 गांवों का सर्वे किया। सर्वे में पाया गया कि वर्तमान में उत्तरकाशी के नेलांग व जादुंग
राजस्व में गैर आबाद हैं। इसके अलावा चमोली जिले में गुमकाना, लुम, खिमलिंग, सांगरी ढकधोना गांव, पिथौरागढ़ में सुम्तू व पोटिंग गैर आबाद हैं। आयोग ने सीमावर्ती गांवों से पलायन पर चिंता जताते. हुए प्रदेश सरकार को रिवर्स पलायन के लिए 45 सुझाव दिए हैं।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आसपास के गांवों को क्लस्टर के रूप में विकसित करने की जरूरत है।सीमांत क्षेत्रों में तैनात कर्मचारियों को आवास के लिए विशेष प्रावधान किया जाए। नेलांग व जादुंग के ग्रामीणों में अपने गांव जाने के लिए परमिट लेना पड़ता है। इसे व्यावहारिक किया जाए। साथ ही सीमावर्ती गांवों में सेब व अन्य बागवानी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए। जिससे स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ सके।
ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग, उत्तराखण्ड द्वारा राज्य के भारत-चीन सीमान्त विकासखण्डों में सामाजिक-आर्थिक विकास को सुदृढ़ करने, पलायन पर अंकुश लगाने एवं रिवर्स पलायन को बढ़ावा दिए जाने सम्बन्धी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी । रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु निम्नानुसार हैं।
राज्यान्तर्गत भारत-चीन सीमावर्ती जनपदों के विकासखण्डों में अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा से सटे प्रथम गांव को शून्य किमी मानते हुए 10 किमी की हवाई दूरी पर स्थित सीमा के पास दुर्गम क्षेत्रों/कुल 131 ग्रामों का विस्तृत सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण करके, ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए, सिफारिशें प्रस्तुत कर रहा है।
भारत-चीन सीमावर्ती जनपद उत्तरकाशी के विकासखण्ड भटवाड़ी के अंतर्गत हर्षिल न्याय पंचायत में कुल 10 राजस्व ग्राम सम्मिलित हैं। ग्राम पंचायत मुखवा की दो राजस्व ग्राम नेलांग और जादुंग में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार क्रमशः 29 व 48 जनसंख्या के आंकड़ें प्राप्त हुऐ हैं, जबकि वर्तमान में उल्लिखित दोनों ग्राम गैर-आबाद हैं।
जनपद चमोली के अंतर्गत जोशीमठ विकासखण्ड के न्याय पंचायत मलारी, तपोवन और पाण्डुकेश्वर में क्रमशः 16, 08, व 08 राजस्व ग्रामों को जोड़ते हुए कुल 29 राजस्व ग्राम सम्मिलित हैं। 29 राजस्व ग्रामों में से तीन राजस्व ग्राम रेवलचक कुरकुटी, फागती और लमतोली वर्तमान में गैर-आबाद हैं।
जनपद पिथौरागढ़ के अंतर्गत धारचूला विकासखण्ड के न्याय पंचायत गूंजी, सोसा, दुग्तू, खेत, धारचूला देहात और बरम में क्रमशः 07, 18, 09, 14, 14 व 07 राजस्व ग्रामों को जोड़ते हुए कुल 69 राजस्व ग्राम सम्मिलित हैं। 69 राजस्व ग्रामों में से चार राजस्व ग्राम गुमकाना, लुम, खिमलिंग और सांगरी ढकधोना गैर-आबाद हैं।
जनपद पिथौरागढ़ के अंतर्गत मुनस्यारी विकासखण्ड के न्याय पंचायत दरकोट, लीलम, मदकोट, सिर्तोला और बॉस बगड में क्रमशः 02, 14, 02 10 व 01 राजस्व ग्रामों को जोड़ते हुए कुल 29 राजस्व ग्राम सम्मिलित हैं। 29 राजस्व ग्रामों में से दो राजस्व ग्राम सुम्तू और पोटिंग गैर-आबाद हैं।
*पलायन की स्थिति*
भारत-चीन सीमावर्ती जनपद पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी के अन्तर्गत कुल 15 न्याय पंचायतों में 97 ग्राम पंचायत एवं 136 राजस्व ग्राम अवस्थित हैं।
136 राजस्व ग्रामों से 11 राजस्व ग्राम वर्तमान समय में गैर आबाद हैं। जनपद पिथौरागढ़ के विकासखण्ड धारचूला में सबसे अधिक कुल 69 राजस्व ग्राम अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से 10 किमी की हवाई दूरी पर स्थित हैं। जबकि जनपद उत्तरकाशी के विकासखण्ड भटवाड़ी में मात्र 10 राजस्व ग्राम ही भारत-चीन सीमा के पास स्थित हैं, जिनमें से दो प्राथमिक राजस्व ग्राम नेलांग और जादुंग वर्तमान में गैर आबाद हैं, जो कि चिन्ताजनक है।
*.मुख्य व्यवसाय* :
. राज्य के भारत-चीन सीना पर अवस्थित राजस्व ग्राम स्तर पर मुख्य व्यवसाय “कृषि” है. इसके बाद उद्यानीकरण और पशुपालन है।
. विकासखण्ड भटवाडी के अन्तर्गत मुख्य व्यवसाय के रूप में कृषि से औसतन 0.16% लोग ही जुडे हुए हैं जबकि विकासखण्ड के सीमावर्ती इलाकों में अधिकांश लोगों का उद्यानीकरण, पर्यटन और पशुपालन मुख्य व्यवसाय है। विकासखण्ड जोशीमठ के अन्तर्गत मुख्य व्यवसाय के रूप में अन्य कार्य एवं उद्यानीकरण औसतन 1.48% एवं 2.46% लोगों द्वारा अपनाया गया है क्योंकि विकासखण्ड के सीमावर्ती गांवों में अधिकांश लोगों का कृषि, मनरेगा, पर्यटन और पशुपालन मुख्य व्यवसाय है।
. विकासखण्ड मुनस्यारी के अन्तर्गत मुख्य व्यवसाय के रूप में उद्यानीकरण एवं पर्यटन औसतन 0.71% व 0.79% लोगों द्वारा अपनाया गया है जबकि विकासखण्ड के सीमावर्ती गांवों में अधिकांश लोगों का कृषि, पशुपालन, मजदूरी और मनरेगा, मुख्य व्यवसाय है। विकासखण्ड धारचूला के अन्तर्गत मुख्य व्यवसाय के रूप में पर्यटन एवं उद्यानीकरण औसतन 2.73% , 18% लोगों द्वारा अपनाया गया है जबकि विकासखण्ड के सीमावर्ती गांवों में5 अधिकांश लोगों का कृषि, पशुपालन, मजदूरी और मनरेगा, मुख्य व्यवसाय है।
. सीमावर्ती विकासखण्ड जोशीमठ, मुनस्यारीi और धारचूला के सीमावर्ती गांवों में उद्यानीकरण पर विशेष ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है।
मुनस्यारी और धारचूला सीमावर्ती विकासखण्डों के सीमावर्ती गांवों में पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा दिए जाने पर जोर दिया दिया जाय। सीमावर्ती क्षेत्रों में उत्तराखण्ड राज्य द्वारा सामाजिक-आर्थिक विकास को सुदृढ करने, पलायन पर अंकुश लगाने एव रिवर्स पलायन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न विभागों के माध्यम से कई प्रकार की योजना का संचालन किया जा रहा है। जिनकी संक्षिप्त जानकारी रिपोर्ट में दी गयी है।
उक्त के अतिरिक्त रिपोर्ट में भारत-चीन अन्तर्राष्ट्रीय सीमांत विकासखण्ड़ों हेतु सिफारिशें भी प्रस्तुत की गयी है, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है:-
. वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम के अन्तर्गत आस-पास के ग्रामों को कलस्टर के रूप में विकसित किए जाना एवं विशेष योजना बनाये जाना। सीमांत क्षेत्रों में नियुक्त सभी कार्मिकों के आवास के लिए विशेष प्रावधान। नेलांग और जादुंग के ग्रामीणों को भी अपने गांव जाने के लिए पास लेना पड़ता है, इसे व्यावहारिक किया जाना चाहिए। पास बनाने का कार्यालय यदि हर्षिल में हो तो सीमान्त दर्शक यात्री बढ़ सकते हैं। इन विस्थापित गांवों का पुनर्वास भी धीरे-धीरे हो सकता है।
. सेब और अन्य स्थानीय फलों की नर्सरी हर्षिल में ही विकसित की जाय। उच्चस्तर का बीज एवं उर्वरक उपलब्ध हो, हिमाचल की निर्भरता समाप्त हो। सीमांत ग्रामों में नेटवर्क Connectivity का अभाव है। सीमांत क्षेत्रों में भारतीय टेलीकॉम कम्पनियों को टावर लागने के लिए विषेश प्रोत्साहन देने से यह कमी पूरी होगी। सीमांत ग्रामों में मनरेगा के अन्तर्गत 200 दिन का रोजगार दिये जाने के प्राविधान पर विचार किया जाना, बागानों की भूमि सुधारीकरण एवं सुरक्षा व्यवस्था, जंगली जानवरों के आंतक से मुक्ति का प्राविधान।
उन ग्रामों की ओर अधिक ध्यान केन्द्रित करना जिन ग्रामों ने ग्रामीण विकास की योजनाओं में दूसरे ग्रामों की अपेक्षा कम प्रगति हुई हो। विकासखण्ड़वार विस्तृत कार्ययोजना तैयार कर ग्राम्य विकास विभाग एवं अन्य रेखीय विभागों का सहयोग लिया जाय।किसानों को सीधे बाजारों से संबद्ध करना, फसल का उचित मूल्य प्रदान करना विजिटल प्री का उपयोग, डिजिटल मार्केटप्लेस का निर्माण, विचौलियों की भूमिका को समाप्त करना, कीटी और बीमारियों के फार्म-स्तरीय निदान, पोषण संबधी सलाह इत्यादि के विषय में किसानों को समय-समय पर डिजीटल रूप से सूचित किया जाना।
भूमि सुधार कानूनों को प्रभावकारी ढंग से लागू करना एवं भूमि की जोत के आकार में सुधार, ऐसा होने से कृषकों को कृषि कार्य करने के लिए प्रेरणा मिलेगी और कृषि में सुधार होगा।
किसानों को सरकारी प्रशिक्षकों द्वारा समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाना। कृषि के साथ-साथ पशुपालन, डेरी, फल एवं सब्जी उत्पादन आदि कार्यों को बढ़ावा देकर मिश्रित खेती
की जानी चाहिए। .सेब उत्पादकों को उचित मार्गदर्शन एवं विपणन हेतु प्रशिक्षण। सेब के पौध हेतु ट्रीटमेन्ट, दवाई, स्प्रे, उन्नत प्रजाति के पौध और खाद देने की समय सारणी (सेड्यूल) उपलब्ध कराये जाना।
ग्रेडिंग और प्रोसेसिंग यूनिटों की स्थापना एवं “सेब उत्पादक समूह” को प्रशिक्षण दिये जाने का प्रावधान। डेमस गुलाब जैसे कंटीले प्रजाति की वायो दीवार या सोलर फेंसिंग आदि अन्य प्रकार के निर्माण”मुख्यमंत्री सीमान्त क्षेत्र विकास योजना” की उप योजना “मुख्यमंत्री सीमान्त खेत सुरक्षा योजना” कृषि और उद्यान विभाग के माध्यम से इन क्षेत्रों में अखरोट, चरी और नाशपाती के साथ-साथ सब्जी उत्पादन को भी बढ़ावा दिये जाना।
फ्लोरीकल्चर को बढ़ावा, नर्सरी/ पौधशाला के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार को उत्पन्न किये जाना।. विभाग को फल, तथा मसाला उत्पादन के लिए उन्नत तकनीकी प्रशिक्षण देने की सुविधा, जड़ी-बूटी क्षेत्र को विकसित स्थानीय मूल निवासियों को रोजगार से जोड़ना, संबंधित क्षेत्रों को हिमालयन जड़ी-बूटी हब के रूप में विकसित किया जाना।
क्षेत्रान्तर्गत हिमालयन जड़ी-बूटी क्रय विक्रय केन्द्र स्थापित किये जाना। जड़ी-बूटी के रख-रखाव, प्रसंस्करण एवं प्रशिक्षण की सुविधा। मत्स्य पालन को बढ़ावा दिए जाना, मार्केटिंग प्लेटफार्म उपलब्ध कराये जाना, मछलियों हेतु कृत्रिम चारा
उत्पादन, तकनीकी जानकारी, समय-समय पर सीमान्त क्षेत्रों के ग्रामीणों को पशुपालन और डेयरी उद्योग हेतु वैज्ञानिक प्रशिक्षण दिये जाना।
. डेयरी व्यवसाय के संचालन को डिजिटल बनाने, दूध की बर्बादी कम करने, दूध उत्पादन में सुधार करने, पशुओं के स्वास्थ्य की निगरानी करने, दूध उत्पादन में विसंगतियों का पता लगाने हेतु नयी तकनीकी का प्रयोग किए जाना।
. सीमान्त क्षेत्रों में पशु चिकित्सा संस्थान / केन्द्र खोले जाने चाहिए, नियमित और आवधिक टीकाकरण कार्यक्रम संचालित किये जाना। दूध उत्पादकों को संतुलित एवं पोषक तत्वों के बारे में जानकारी हेतु प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। “सीमान्त क्षेत्र उद्यम नीति” तैयार करना।सीमान्त क्षेत्र में उद्यम स्थापित करने के लिए अनुदान राशि को अन्य क्षेत्रों के मुकाबले अधिक रखना चाहिए।
सीमावर्ती क्षेत्रों में बेरोजगारों को चिह्नित करते हुए शून्य ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने एवं ऋण अदायगी विगत तीन साल बाद, किये जाने का प्राविधान हो। विभाग को अन्य रोजगारपरक विभागों के साथ समन्वय स्थापित करते हुए सीमावर्ती क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता आधारित, पर्यटन आधारित एवं उद्योग आधारित उद्यम स्थापित करने की कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए।
सीमावर्ती क्षेत्रों में पर्यटन स्थलों की स्थापना, सीमावर्ती पर्यटन (Border Tourism) को बढ़ावा देने सीमान्त क्षेत्रों के अन्तर्गत ट्रैकिंग संबंधी आधारभूत सुविधाओं का सुव्यवस्थित करना। स्थानीय गाइडों को ट्रैकिंग संबंधी प्रशिक्षण एवं हैल्पिंग इन्स्ट्रूमेंट उपलब्ध कराना। “सीमा दर्शन” को पर्यटन के अन्तर्गत विकसित करना।35. संबंधित क्षेत्रों में दीनदयाल उपाध्याय होमस्टे योजना से लाभान्वित होने जंगल ट्रेल, ट्रैकिंग मार्ग और अन्य सीमांत जनपदों के सभी विकासखण्ड़ों में सर्वेक्षण कर साहसिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जाना।प्रकृति आधारित पर्यटन (ईको टूरिज्म) को विकसित करना। जंगली जानवरों से खेती को हो रहे नुकसान से बचाने के लिये ठोस कदम उठाने होंगे।
नाप भूमि में पेड़ों के कटान की अनुमति की प्रक्रिया को सरल करना।सीमान्त विकासखण्डों में केन्द्रीय विद्यालयों को खोला जाना, स्कूलों में रोजगारपरक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाना। स्कूली शिक्षा के साथ बच्चों को कौशल विकास / व्यावसायिक शिक्षा / तकनीकी शिक्षा ,इन क्षेत्रों में सेवाओं के स्तर को और अधिक मजबूत किया जाए। सीमान्त क्षेत्रों के³ग्रामीणों का अस्पतालों में निःशुल्क स्वास्थ्य जांच हो।