– भाजपा ने लोकसभा में भंडारी का फायदा लिया, हार भंडारी के हिस्से
– सतारूढ़ दल की साख गिरी ,लेकिन नुकसान कम,चूंकि न मंगलौर अपना था और न बदरीनाथ अपने पास
– मंगलौर के मतदाताओं ने हरियाणा के व्यवसाई करतार सिंह भड़ाना व बदरीनाथ के लोगों को भंडारी का भगवा नहीं आया पसंद
पहाड़ का सच देहरादून।
दो दो उप चुनाव हारने से सतारूढ़ दल की साख पर जरूर सवालिया निशान लग गया है, लेकिन बदरीनाथ की हार का असर भाजपा से अधिक पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी पर पड़ेगा। भाजपा ने भंडारी को कांग्रेस से तोड़कर लोकसभा चुनाव में जो फायदा लेना था ले लिया। वैसे भी भाजपा को पहले से बखूबी इल्म था कि मंगलौर और बदरीनाथ सीट पहले भी उसके पास नहीं थीं ।
मंगलौर व बदरीनाथ के उपचुनाव में जीत के बाद कांग्रेस किले में जश्न का माहौल है। कांग्रेस ने उपचुनाव में जीत दर्ज नया इतिहास रच दिया। चूंकि राज्य गठन के बाद हुए उपचुनाव में विपक्षी दल कांग्रेस ने पहली बार जीत हासिल की है। इससे पहले द्वाराहाट विधानसभा के यूकेडी विधायक विपिन त्रिपाठी के निधन के बाद उनके पुत्र पुष्पेश त्रिपाठी ने उपचुनाव जीता था। नारायण दत्त तिवारी सरकार के कार्यकाल में यह चुनाव हुआ था।
कुछ ही महीने के अंदर होने वाले केदारनाथ उपचुनाव व निकाय चुनाव में विपक्ष की यह जीत कांग्रेस का मनोबल बढ़ाने के लिए काफी है।
कांग्रेस की यह जीत इसलिए भी विशेष मायने रखती है कि लगभग एक महीने पहले ही भाजपा ने पांचों लोकसभा सीट लगभग डेढ़ व ढाई लाख मतों के अंतर से जीती थी।
पौड़ी से अनिल बलूनी और त्रिवेंद्र सिंह रावत हरिद्वार से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते। दोनों नव निर्वाचित सांसदों अनिल बलूनी के लिए बदरीनाथ और त्रिवेंद्र के लिए मंगलौर सीट किसी एसिड टेस्ट से कम नहीं थीं।
हालांकि, राज्य गठन के बाद मंगलौर सीट कभी भाजपा ने जीती ही नहीं थी। ऐसे में बाहरी प्रत्याशी भड़ाना का बसपा को पछाड़ दूसरे नंबर पर आना पार्टी के लिए संतोष का सबब हो सकता है। 2022 में भाजपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे थे। पौड़ी लोकसभा चुनाव में अनिल बलूनी को बदरीनाथ सीट से 8 हजार की लीड मिली थी लेकिन चुनाव जीतने के 40 दिन के अंदर हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजेन्द्र भंडारी कांग्रेस के नये नवेले बुटोला से 5000 से अधिक मतों से हार गए।
डबल इंजन की सरकार में बदरीनाथ सीट पर भाजपा के उस प्रत्याशी का हार जाना जो 2022 में कांग्रेस के टिकट पर प्रचंड मोदी लहर के बावजूद जीत गए थे, भंडारी की रातों रात भाजपा में आमद से जोड़कर भी देखा जा रहा है। भंडारी के रातों रात भाजपा में शामिल होने के बाद सतारूढ़ दल के गलियारों में ये चर्चा आम थी कि भंडारी के पार्टी में शामिल होने के बारे में सरकार व संगठन को भी एलेवंथ hour में बताया गया।
विधानसभा उप चुनाव की इस हार के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी आम हो गयी है कि अगर उत्तराखण्ड में लोकसभा चुनाव पहले चरण 19 अप्रैल को न होकर तीसरे या चौथे चरण में होता तो चुनाव परिणाम की कुछ अलग ही तस्वीर होती।फिलहाल, प्रदेश की जनता ने इस उपचुनाव में बाहरी भड़ाना और रातों रात भाजपा में शामिल भंडारी की इस विधानसभा में जाने की राह रोक दी है। फिलहाल, भाजपा प्रत्याशी भंडारी अपनी विधायकी गंवा चुके हैं। वे फिलहाल न घर के रहे न घाट के। इधर, भाजपा में भंडारी की आमद पर भी पार्टी के अंदर नये सिरे से चर्चा होने की संभावना है।
दूसरी ओर, भाजपा नेतृत्व ने करतार सिंह भड़ाना को उत्तराखंड का टिकट देकर समूचे प्रदेश को गर्मा दिया था। मंगलौर की जनता ने करतार सिंह भड़ाना के यहां पैर नहीं जमने दिए। .लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व लोकसभा प्रत्याशी गणेश गोदियाल ने बदरीनाथ सीट पर कार्यकर्ताओं के साथ अपने दौरे जारी रखे। उन्होंने राजेंद्र भंडारी की ओर से मिले राजनीतिक धोखे की कहानी गांव गांव बयां की और मतदाताओं से भंडारी को सबक सिखाने की बात भी कहते रहे। यही नहीं, 2022 के विधानसभा चुनाव में भंडारी का ब्राह्मणों के विरोध में कही गयी बातों का ऑडियो जारी होना भी भाजपा का खेल खराब कर गया।
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के मंच से कोसने के अगले की दिन भाजपा में शामिल हो जाना भी मतदाताओं को अखर गया। इससे जुड़ा वीडियो और जोशीमठ आपदा को विपक्ष ने खूब गरमाया। बदरीनाथ सीट पर कांग्रेस की जीत से यह भी साफ हो गया है कि क्षेत्र के मतदाताओं ने भंडारी के दलबदल को पसंद नहीं किया और पहली बार विधायकी का चुनाव लड़े लखपत बुटोला को हाथों हाथ ले लिया।
उपचुनाव परिणाम के बाद भाजपा खेमे में भंडारी समेत अन्य नेताओं को लोकसभा चुनाव के समय पार्टी में लाना भी बहस का मुद्दा बन गया है। भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता अन्य दलों से आई भीड़ को लेकर पहले से ही असहज हैं। चमोली जिले के कुछ वरिष्ठ भाजपाइयों का कहना है कि पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता रातों रात दूसरे दलों से लाए गए लोगों के कारण खुद को अपमानित महसूस करने लगा है। बदरीनाथ और मंगलौर के परिणाम ने पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी का असर दिखा दिया है। उनका कहना है कि जो नेता पहाड़ी होने का दंभ भरकर दिल्ली की राजनीति करते हैं वे जब जब अपने फायदे के लिए दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी पर थोपेंगे, नतीजे ऐसे ही आयेंगे। .चुनावी राजनीति के इतिहास में बदरीनाथ व मंगलौर उपचुनाव के ऐतिहासिक फैसले ने बाहरी उम्मीदवार व रातों रात दल बदलने वाले नेताओं की राह रोक दी है।