पहाड़ का सच,देहरादून।
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि अल्मोड़ा के बिनसर वन्य जीव विहार में आग में झुलस कर चार वन कर्मियों के जान गंवाने और चार अन्य वन कर्मियों के घायल होने की घटना अत्यंत हृदयविदारक और दुर्भाग्यपूर्ण है।
उन्होंने मृतकों के प्रति श्रद्धांजलि प्रकट की और उनके परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की। नेता प्रतिपक्ष ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, इस साल राज्य व्यापी वनाग्नि में बड़ी मानवीय और संपत्ति की क्षति हुई है। उन्होंने कहा कि पहली बार वनाग्नि ने बस्तियों का बड़ा नुकसान किया है। आर्य ने कहा कि, इस साल वनाग्नि में कितने वन्यजीव कितने मारे गए होंगे इसका न तो कोई अनुमान लगाया जा सकता है और न ही वन विभाग के पास इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं है।
आर्य ने कहा कि उत्तराखंड राज्य के निर्माण की लड़ाई जल, जंगल और जमीन को लेकर थी। इस साल वनाग्नि की घटनायें दिसंबर -जनवरी के जाड़ों के महीनों से हो रही थी, जंगलों की आग से नदियां – जल स्रोत सब खत्म हो रहे थे, अमूल्य वन संपदा नष्ट हो रही थी, लाखो जीव जंतु पक्षी आदि भस्म हो रहे थे, इकोसिस्टम बुरी तरह प्रभावित हो रहा था।
उन्होंने अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि प्रमुख विपक्षी दल के नाते हमने सरकार को विभिन्न माध्यमों से निरंतर आगाह भी किया लेकिन मुख्यमंत्री, वन मंत्री अपने राज्य के लोगों और वन संपदा- जीवों को उनके हाल में छोड़कर दूसरे राज्यों में प्रचार में व्यस्त थे।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि, राज्य में साल दर साल वनाग्नि के मामले बढ़ रहे हैं लेकिन राज्य सरकार और वन विभाग के पास इससे निपटने की कोई कार्ययोजना नहीं है। उन्होंने कहा वन विभाग की कार्यप्रणाली से न तो स्थानीय निवासी जंगलों में आग लगने पर सहयोग कर रहे हैं न वन विभाग समय पर फायर लाइन बनाने जैसे एहतिहातन कदम उठा रही है। उनका आरोप है कि, सरकार वनाग्नि की रोकथाम के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रही है।
यशपाल आर्य ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, अल्मोडा की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से सिद्ध होता है कि राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद राज्य भर में लगी जंगल की आग से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए । उन्होंने सवाल उठाया कि वन विभाग के पास पर्याप्त बजट होने के बाद भी वनाग्नि में मारे गए कर्मचारी बिना उपकरण के पेड़ों की टहनियों से आग बुझा रहे थे । आर्य ने सरकार से प्रश्न किया कि बिना आग बुझाने का प्रशिक्षण दिए वन कार्मिकों को क्यों मौत के मुंह में धकेला जाता है ?
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि उत्तराखण्ड में 67 प्रतिशत जंगल हैं जो वैश्विक पर्यावरण के संतुलन के साथ- साथ उत्तराखण्ड के पर्यटन में भी अहम भूमिका निभाते हैं । वनों से यहाँ के लोगो को रोजगार का भी लाभ होता है। ऐसे संवेदनशील विषय पर सरकार का कोई दृष्टिकोण नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है ।